Monday, 31 October 2022

ग़ज़ल:472 --- तेरे हुस्न की

तेरे हुस्न की तारीफ मैं करूं तो कैसे करूं।
पलकें झपकें जो अगर तभी तो कुछ कहूं।।

ये निगाहों की मस्ती डुबो देती है सर से पांव तक।
होश रहे यारब तब तो कलाम अपना लिख सकूं।।

रूप,रंग,अदा सभी तो है बांकी तेरी कसम से।
तू ही बता किस-किस को याद करूं किसे भूलूं।। 

देखा है जबसे बन गए हैं आशिक तेरे हम तो दिल से।
तू कबूले नहीं अगर तो बता कहाँ जाकर भला रोऊं।।

देर है तो देर ही सही हम तो अड़े बैठे हैं दर पर तेरे।
तू ठोक-बजा इत्मीनान से परख क्या "उस्ताद" हूं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

No comments:

Post a Comment