Sunday, 30 October 2022

ग़ज़ल 471: हुआ क्या?

दो और दो का जोड़ पढ़कर भी यारा हुआ क्या?
सफर इससे जिंदगी का कहो आसां हुआ क्या?

दावे तो बहुत गजब के सफेदपोशों ने अक्सर किए। 
असल थोड़ा-बहुत भी रंग बेहतर हमारा हुआ क्या? 

तुमसे किसने कहा था नजदीक हमारे आने को इतना।
आग और पानी का कभी संग साथ चलना हुआ क्या? 

होठों पर हंसी दिल में जख्म लिए चलते रहे ताउम्र हम।कभी इस बात का गुमान भी किसी को जरा  हुआ क्या? 

लिखे भला क्यों रूहानी नूर पर "उस्ताद" कलाम अपना। सूरज को चिराग दिखाने से मकसद हल भला हुआ क्या?

नलिनतारकेश @उस्ताद

1 comment: