Thursday 31 October 2019

गजल:263-हमारी हर आह पर सवाल है

हमारी हर आह पर सवाल है।
ये उसका जुल्म भी कमाल है।।
इनायत होती है जब उसकी तुझ पर।
समझ आता उसका हुस्नो जमाल है।।
भटके हुओं को दिखाने रास्ता।
जल रहा वो जैसे एक मशाल है।।
वो भी निकला फकत बेवफा।
दिल में मेरे यही एक उबाल है।।
आंखों में खटक जाए जो कोई।
करता उसे वो तो बस हलाल है।।
समझा ही नहीं कोई हमें यहां।
"उस्ताद"बस यही तो मलाल है।।
@नलिनी #उस्ताद

Friday 25 October 2019

गजल-262:मिलें हों दिल तो

मिलें हों दिल तो हाथ मिलाने की कीमत नहीं।
हों न मिले तो फिर मिलाने की भी जरूरत नहीं।।
दिलों की धड़कनों से अपनी तुम जान जाओगे।
जो प्यार करोगे असल तो पूछोगे कैफियत*नहीं।*हाल/समाचार
हो अगर अंजान हकीकत से तुम किसी की।
लगाना उस पर कभी ठीक बेबात तोहमत*नहीं।।*झूठा इल्जाम
दुनियावी बातों में हिसाब-किताब से किसे एतराज है।
बात ये मगर कतई जायज होती कभी मुहब्बत नहीं।।
प्यार से बोलो लगाओ जरा काफिर को भी गले।
लगता है की है तुमने कभी ठीक से इबादत नहीं।।
खुशियों से कह दो "उस्ताद" लिख रहे गजल।
दहलीज पर ठहरें अभी गमों से फुर्सत नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday 23 October 2019

गजल-261:दिल आज परेशान है

जाने क्यों दिल आज परेशान है।
हकीकत से दुनिया की हैरान है।।
जब तुझमें भी वही रब जो मुझमें बसा हुआ। 
तो भटकता काहे अजनबी सा अनजान है।। 
जिंदगी की तलखियाँ*सच कहें तो।*कड़ुवापन
तेरा-मेरा अक्सर लेती इम्तहान है।।
घर सजाने का ख्वाब तो है नेमत भरा।
तो खुद से बनाता क्यों तू तालिबान है।।
चाँद-सितारों को चूम रही जब सारी दुनिया।
ये किस जहालत* को"उस्ताद"तेरी उड़ान है।।*मूर्खता
@नलिन#उस्ताद

Tuesday 22 October 2019

गजल-260 :जन्नत के ख्वाब

जन्नत के ख्वाब हमें वो दिखाने आए हैं। दुनिया की हकीकत से जो बचते आए हैं।। 
होते हैं तेरे-मेरे बीच कुछ ऐसे शख्स भी।
हर भले काम जो खलल डालते आए हैं।।
न करो बात नामुराद सियासतदानों की। अंगुलियों पर इन्साफ ये नचाते आए हैं।।गद्दार हैं रहते कुछ हमारे मुल्क के भीतर ही।
दुश्मनों से जो नापाक हाथ मिलाते आए हैं।।
नाजनीनों को हल्के में लेने से बचिए हुजूर। 
ये तो अदाओं से जिलाते ओ मारते आए हैं।।
खैरमकदम* किस-किस का कहो करते फिरें हम।*अभिनन्दन  
यहां तो सभी खुद को "उस्ताद" बताते आए हैं।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-259 : बेपरवाही में

बेपरवाही में भी इतना एहतियात*तेरे पास रहे।*सावधानी
गुलों के साथ खेल मगर कांटों का एहसास रहे।।
जिंदगी को समझना हो अगर तुझे सही मायने में।
दोस्त ही नहीं दुश्मनों के साथ भी इजलास*रहे।।*बैठक/बातचीत
एक तार की चाशनी में डुबोने का फन हो अगर हांसिल। 
तेरे-मेरे रिश्तों में कहाँ जरा भी कोई खटास रहे।।
पर्दादरी रहेगी किससे भला बता तो सही।
हर कोई जब तेरे लिए अपना ही खास रहे।। 
दुआ कर ले खुदा कबूल बस यही एक चाह है।
जब तलक है सांस तब तलक वो मेरे पास रहे।।
अदना सा आदमी भला देगा क्या किसी को।
नामुमकिन भी है मुमकिन जो उसकी आस रहे।। 
जुड़ें जो बेतार के तार परवरदिगार से तेरे। 
फिर भला"उस्ताद"क्यों तू कभी उदास रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Friday 18 October 2019

गजल-258 :खरामां-खरामां

खरामां-खरामां यूँ ही चलते रहो।
हवा की मानिंद चुपचाप बहते रहो।।
जल्दबाजी की जरूरत जरा भी नहीं।
सुकूं से फैलाके पंख तुम उड़ते रहो।।
जिंदगी मिली है ये जो नसीब से उसके।
दरिया ए मौज हर हाल बस लेते रहो।।
घूरे के दिन भी बदलते हैं यारब ।
दिल को उम्मीद ये दिलाते रहो।।
दुनिया ए दस्तूर रहा है टांग खींचना।
तुम तो अपनी ही मस्ती में फिरते रहो।। बेझिझक बिंदास अपने दिल की करो।
भीतर ही भीतर मगर तुम न कुढते रहो।।
आएगा"उस्ताद"दर पर तुझसे वो मिलने।
शिद्दत से तुम तो इबादत बस करते रहो।।
@नलिन#उस्ताद

गजल-257:परवाने को

परवाने को अपनी मंजिल मिली थी।
आँखों में उसे एक चिंगारी दिखी थी।।
यूँ ही नहीं उमड़ा है प्यार उसके लिए।
देखते ही दिल में एक बाती जली थी।।
खुले आसमां में डोलते हों जैसे बादल।
उसकी अदा उसे यूँही बिंदास लगी थी।।
हवा में हिचकोले खाती पतंग के जैसे।
बातों से अपनी वो तो पलटती रही थी।।
परिंदों की तरह चहचहाना बात-बेबात।
आदत ये उसको बहुत पुरानी पड़ी थी।।
मुद्दतों"उस्ताद"जज्बात रोके हुए था।
बरसात तो गोया अब ये थमनी नहीं थी।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday 17 October 2019

गजल-256:घुट-घुट के

घुट-घुट के यूँ न आप जिया कीजिए।
कहीं न कहीं तो दिल लगाया कीजिए।। नादानी में भी छुपी है कुछ बात बड़ी।
बच्चों से ये जरा सीख लिया कीजिए।।
बहुत बदल गया है ये जमाना हुजूर।
जरा चश्मा तो अपना नया कीजिए।।
पेशानी में बल क्यों पड़ते हैं आपके।
लबों को कभी तो खिलाया कीजिए।। जमाना दिखता है आप जैसा देखना चाहें। खुद का दामन तो कभी टटोला कीजिए।।
"उस्ताद"दो घड़ी की है ये जिंदगी केवल।महकिए और सबको महकाया कीजिए।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday 16 October 2019

गजल-255:हमें याद करना

फुर्सत मिले तो हमें याद करना।
कभी हमारी भी पूरी मुराद करना।
माना हम नहीं हैं काबिल तेरे।
कभी तो मगर इमदाद* करना।*मदद
दूसरों को शिकस्त देने से पहले।
खुद के भीतर जरा जिहाद* करना।।*धर्मयुद्ध
घोड़ा-गाड़ी,सोना-चाँदी छोड़ कर।
प्यार की हांसिल जायदाद करना।।
हर जगह अंधेरा गला घोंट रहा अब तो।
इल्म ओ हुनर से इसे आबाद करना।।
हो जाती है गुस्ताखी हर किसी से।
माफ हमें तू"उस्ताद"करना।।

@नलिन*उस्ताद

Monday 14 October 2019

गजल-254: निगाहों में उसकी एक समंदर

निगाहों में उसकी एक समंदर बसता है।
तभी तो वो शायद नमकीन लगता है।।
मचल के तोड़ देता है समंदर सब किनारे।
आसमां से जब भी चांद इशारे करता है।। डूबना भी चाहो तो कहां आसां है डूबना। मौजों से अपनी वो ही किनारे पटकता है ।।
जाने कितनी नायाब राज छुपाए हैं सीने में। बाहर से चाहे ये बड़ा ही खामोश रहता है।।  हो चाहे जमाना समंदर के जैसा भरमाता बड़ा गहरा।
"उस्ताद"को तो बस ये बाजीचा*-ए-अतफाल**लगता है।।*खिलौना **बच्चे
(बच्चों का खिलौना)
@नलिन#उस्ताद

साईकिल की सवारी

एक पहल छोटी ही सही
☆☆☆卐卐卐☆☆☆
आओ पैडल मारें एक सुकूं भरी जिंदगी पाने के लिए।
आओ साइकिल चलाएं हम धरा को बचाने के लिए।।
पहल ऐसी सार्थक करनी तो होगी कभी ना कभी।
बना के मुहिम क्यों ना करें कुछ जमाने के लिए।।
यूं तो कदम बहुत छोटा है इस दिशा में ये एक।
बूंद-बूंद से है भरता धड़ा बस यह दिखाने के लिए।।
सुधरेगा स्वास्थ्य इससे न केवल हमारा बल्कि चमन का भी।
काम आएगी ये तरकीब भी धन अपना बचाने के लिए।।
जो फिटनेस रहेगी तो मुट्ठी में रहेगा जमाना हमारे।
वरना तो हर कवायद बताओ करते हैं हम किसके लिए।।
स्वच्छ भारत मुहिम हो या प्लास्टिक- मुक्त धरा की अपील।
करना तो होगा हमें ही नया कुछ रोकथाम करने के लिए।।
@नलिन#तारकेश