Friday 18 October 2019

गजल-258 :खरामां-खरामां

खरामां-खरामां यूँ ही चलते रहो।
हवा की मानिंद चुपचाप बहते रहो।।
जल्दबाजी की जरूरत जरा भी नहीं।
सुकूं से फैलाके पंख तुम उड़ते रहो।।
जिंदगी मिली है ये जो नसीब से उसके।
दरिया ए मौज हर हाल बस लेते रहो।।
घूरे के दिन भी बदलते हैं यारब ।
दिल को उम्मीद ये दिलाते रहो।।
दुनिया ए दस्तूर रहा है टांग खींचना।
तुम तो अपनी ही मस्ती में फिरते रहो।। बेझिझक बिंदास अपने दिल की करो।
भीतर ही भीतर मगर तुम न कुढते रहो।।
आएगा"उस्ताद"दर पर तुझसे वो मिलने।
शिद्दत से तुम तो इबादत बस करते रहो।।
@नलिन#उस्ताद

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