Tuesday, 22 October 2019

गजल-259 : बेपरवाही में

बेपरवाही में भी इतना एहतियात*तेरे पास रहे।*सावधानी
गुलों के साथ खेल मगर कांटों का एहसास रहे।।
जिंदगी को समझना हो अगर तुझे सही मायने में।
दोस्त ही नहीं दुश्मनों के साथ भी इजलास*रहे।।*बैठक/बातचीत
एक तार की चाशनी में डुबोने का फन हो अगर हांसिल। 
तेरे-मेरे रिश्तों में कहाँ जरा भी कोई खटास रहे।।
पर्दादरी रहेगी किससे भला बता तो सही।
हर कोई जब तेरे लिए अपना ही खास रहे।। 
दुआ कर ले खुदा कबूल बस यही एक चाह है।
जब तलक है सांस तब तलक वो मेरे पास रहे।।
अदना सा आदमी भला देगा क्या किसी को।
नामुमकिन भी है मुमकिन जो उसकी आस रहे।। 
जुड़ें जो बेतार के तार परवरदिगार से तेरे। 
फिर भला"उस्ताद"क्यों तू कभी उदास रहे।।
@नलिन#उस्ताद

No comments:

Post a Comment