निगाहों में उसकी एक समंदर बसता है।
तभी तो वो शायद नमकीन लगता है।।
मचल के तोड़ देता है समंदर सब किनारे।
आसमां से जब भी चांद इशारे करता है।। डूबना भी चाहो तो कहां आसां है डूबना। मौजों से अपनी वो ही किनारे पटकता है ।।
जाने कितनी नायाब राज छुपाए हैं सीने में। बाहर से चाहे ये बड़ा ही खामोश रहता है।। हो चाहे जमाना समंदर के जैसा भरमाता बड़ा गहरा।
"उस्ताद"को तो बस ये बाजीचा*-ए-अतफाल**लगता है।।*खिलौना **बच्चे
(बच्चों का खिलौना)
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday, 14 October 2019
गजल-254: निगाहों में उसकी एक समंदर
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