Saturday 31 July 2021

369:गजल-गजल-वादा निभाना था

भरम में भी जी रहे थे तो भला क्यों तोड़ना था।
बेवफा हो ये क्या जरूरी बहुत हमें जताना था।।

किरचे-किरचे कर दिया तोड़ दिल तूने हमारा।
वजह बेवजह ही की सही कुछ तो बताना था।।

खता तो हुई होगी हमसे कहीं न कहीं हमने माना।
एहसास यारब हमें भी तो करीब आ दिलाना था।।

चौखट हमारी न आया न आने दिया हमें तूने अपनी।
मोहब्बत के रिश्ते का मान तो तुझे कुछ दिखाना था।।

पकड़ ही जो लिया था हाथ ता-उम्र के लिए मेरा।
बता भला बीच मंझधार क्यों मुझे छोड़ जाना था।।

कसीदे गढता रहा शान में कलम घिस-घिस के मैं।
राज तो अब खुला कि तू मुझे महज बहलाता था।।

चलो जो किया सो अच्छा किया होगा उस्ताद तूने।
वादा किया तो हमें अपना मगर हर हाल निभाना था।।

@नलिनतारकेश 

Friday 30 July 2021

368-गजल:काले बादलों को

लबों से निकले तल्ख अल्फाज,तीर से भेदते हैं गहरे।
खोला कीजिए जुबान हुजूर आप,बहुत संभलते हुए।।

बसाया घर जन्नत भी,कुछ वक्त ही मुफीद लगेगा।
बैरागी चलो बस बनके,हर गली,कूचे,शहर,गांव से।।

हवा ले तो आयेगी धर-पकड़कर,काले बादलों को।
जो मौज में आएं अगर अपनी,तभी दिखेंगे बरसते।।

लबे-शहर कहकहे भरता रहा जो शख्स धूम-धूम कर।
सुना है उसी उदास,तन्हा को लोग अब पागल बता रहे।।

"उस्ताद" पकड़ोगे कैसे सियासतदानों की नब्ज तुम।
एक कदम आगे तो कभी ये दस कदम पीछे हैं चलते।।

@नलिनतारकेश

 

Thursday 29 July 2021

367:गजल- फिलसफी अपनी

सिलवटें चादर की कर रही मुखबिरी अपनी।
करवटें दर्द की बताती नकली है हंसी अपनी।।

दिल को बहलाना जिगर का काम बड़ा है।
मौज लेती है पूरी खुदा की खुदाई अपनी।।

गलत नहीं है कुछ तो सही भी कुछ नहीं है यहाँ पे।
दानिशमंद समझ आए न ये तेरी फिलसफी अपनी।।

देखने का आ जाए अंदाज तो बदलती है तस्वीर सारी।
गम-गम नहीं रहता,खुशी भी नहीं रहती कभी अपनी।।

वजूद है उसका जर्रे-जर्रे पर कहते हैं "उस्ताद" सभी।
लौ लगे बिन मुलाकात उससे कभी होती नहीं अपनी।।

@नलिनतारकेश 

Wednesday 28 July 2021

366:गजल-हर हद पार हुई है

निगाह जबसे,संग उसके चार हुई है।
बेकरारी की हद हमारी,हर पार हुई है।।

मस्ती का दरिया,सैलाब बन बह रहा।
बिन पिए ही,बेहिसाब खुमार हुई है।।

जहाँ थी रेत दूर तलक,हलक सूखता था। 
हर रास्ते गुलजार वहाँ,अब बहार हुई है।।

उसे भी मंजूर है लगता,मोहब्बत हमारी। 
लबों पर हंसी तभी तो,गुले कचनार हुई है।।

"उस्ताद" चर्चा किया नहीं कभी तेरा,किसी से।
मगर जाने कैसे बात ये अपनी इश्तिहार हुई है।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday 27 July 2021

365:गजल-गुनगुनाता हूँ

365:गजल 

अक्सर बारिश में खूब,खुद को भिगाता हूँ।
बनके छोटा बच्चा,बस मैं तो गुनगुनाता हूँ।।

फकीरों से झूमते निकलते हैं,बादलों के झुंड। 
जो दिखें ऑगन में अपने,तो सर झुकाता हूँ।।

जानता हूँ रूठी बैठी है बरखा क्यों सावन-भादो में।
उजाड़े हैं गुलजार गुलशन,सजा उसकी ही पाता हूँ।।

बैठक से निकाल दरख़्त सारे,छत पर सजा दिए हैं।
गलबहियां दिला उन्हें सावन की,प्यास बुझाता हूँ।।

लब खोलता नहीं,वरना हर कोई जान लेगा।
तमगा ए "उस्ताद"लगा उल्लू बनाता हूँ।।

@नलिनतारकेश 

Monday 26 July 2021

सावन सोमवार

शिव हैं एकमात्र परम-सत्य,परम-कल्याणप्रद,परम-सुंदर।
आदि-अंत है कहाँ आपका व्यापता सृष्टि दिगदिगंत पर।

कर्पूर-वर्ण,पारदर्शी,सहज-शुद्ध-चित्त,चिदानंद दिगंबर।
जटा-विशाल,कालातीत,महायोगी,त्रिलोकनाथ धुरंधर।। 

शमशान-भस्म लपेटे सर्वांग,गले नाग,मुंडमाल प्रलयंकर।
भूत,प्रेत,पिशाच गण सेवित,धरे रूप स्वयं का अभयंकर।

डमरू,त्रिशूल हाथ त्रिलोचन,सोहे भालचंद्र,गंगाधर।
ॠषभ विराजित नीलकंठ,शैलसुतापति अर्धनारीश्वर।।
 
द्वादश ज्योतिर्लिंगाधिपति,त्रयम्बक विकट महाकालेश्वर। आशुतोष तुम अवढरदानी,अद्भुत सकल ब्रह्मांड नटेश्वर।।

बेल,धतूरा,मंदार पुष्प अतिप्रिय प्रदोष तिथि तारकेश्वर।
"नलिन" हृदय विराजित बाल रूप छवि श्रीराम मनोहर।।

नलिनतारकेश

Sunday 25 July 2021

364:गजल-रोशनदान तो खोलिए

दरवाजे खिड़कियां बंद कर  घुटन न ओढ़ा कीजिए। 
हुजूर थोड़ा ही सही रोशनदान तो अपना खोलिए।।
 
हर किसी में होती है खासियत जरूर कुछ न कुछ।
यूँ ही नहीं हर एक को बस एक आँख से तौलिए ।।
 
फूल हैं देखिए गुलशन में हजारों-हजार किस्म के।
जुदा रंग,खुशबू,बनावट सब को तरजीह* दीजिए।।
*वरीयता

फासले हो ही जाते हैं दूरियों के सफर में चलते-चलते।
थपेड़ों ने वक्त के डाली जो हर गिरह* प्यार से खोलिए।।
*गाँठ 

"उस्ताद"जो ठान ले आदमी तो क्या नहीं है मुमकिन। 
लकीरें बस तदबीर* से हाथों की अपनी बदल डालिए।।
*पुरूषार्थ 

@नलिनतारकेश

Saturday 24 July 2021

गजल:363-महकाता दिखा

डायरी का पन्ना पुराना फड़फड़ाता दिखा।
अरसे बाद दिल ये बहुत गुनगुनाता दिखा।।

चाहतों की मट्टी जब भी बीज को खाद-पानी मिला। 
हर तरफ फूलों का सिलसिला खिलखिलाता दिखा।।

चश्मे नूर जब आए मुद्दतों बाद महफिल में हमारी। 
हर कोई कानों में एक दूजे के फुसफुसाता दिखा।।

दुनिया का दस्तूर रहा है आज नहीं सदा-सदा का। 
जिससे भी काम पड़ा पाँव उसके सहलाता दिखा।।

चलन अब छूट गया नेकी कर कुएं में डालने का।
इश्तहार हर कोई राई से काम के गिनाता दिखा।। 

नेकी-बदी,शुक्र-नाशुक्री भुला "उस्ताद" सबको। 
बस हर घड़ी रूह को हरेक की महकाता दिखा।।

@नलिनतारकेश

Friday 23 July 2021

कविता:मेघ मल्हार

मेघ मल्हार
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घनन-घनन घन,गर्जन लागे।
उमड़-घुमड़ कर,बरसन लागे।।
हरी-भरी धरती मुस्काए।
जीव-जीव सब नर्तन लागे।।
उर अभिलाषा बहे वेग से।
संगम हो सरिता समुद्र से।।
कलकल-कलकल,ध्वनि हो रही।
बजती हो स्वर,जैसे सारंगी।।
सूखे पात,सुधा-रस पाते।
दादुर,मोर,पपीहा गाते।। 
भजनानंदी हरि रिझाएं।
प्रीत-लाड़ से उन्हें बुलाएं।।
मंद,तार स्वर बूंदे टपकें।
नैन "नलिन" खिलके तब दमकें।।

@नलिनतारकेश 

कविता: गुरुपुर्णिमा की बधाई


सभी को गुरुपुर्णिमा की हार्दिक बधाई
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हे गुरुदेव प्रभु आप हमें शरणागति शीघ्र अपनी दीजिए।
आकुल-व्याकुल,जन्म-जन्मों से अब कृपा कर दीजिए।।

सृष्टि में फैला है मायाजाल का तमस गहरा चारों ओर ही।
श्रीचरणनख ज्योतिपुंज से आलोक अब तो भर दीजिए।।

असमर्थ,लाचार,विवश हो भयग्रस्त नख-शिख कांप रहे।
अभयदान देकर हमें आप अपने रक्षा-कवच ले लीजिए।।

मंत्र,यंत्र,तंत्र जाप कुछ भी तो हमसे इस घड़ी होता नहीं।  दो शब्द सुन सकें श्रीमुख से ऐसी करूणा बस कीजिए।।

मंझधार में फंसे विकल हम काल मुख विकट ग्राह के। त्राहि-त्राहि राह तकते आपकी,सो त्वरित ही पधारिए।।

व्यथा,पीड़ा,कष्ट नष्ट होंगे गुरुदेव सभी आपके प्रताप से।
"नलिन"श्रीचरण आप अपने सहलाने का अवसर दीजिए।।

@नलिनतारकेश 

Thursday 22 July 2021

362: गजल- तेरे लिए

आँखों में ख्वाब हैं मचलते तेरे लिए।
हकीकत में मगर हैं बिखरते तेरे लिए।।

चलो देखते हैं कब तक इम्तहां ये चलेगा।
यूँ हम भी कमर हैं बेखौफ कसे तेरे लिए।।

बिन तेरे अब एक पल काटना भारी हो रहा। 
सो हर जुगत अब हम आजमाएंगे तेरे लिए।। 

हवाएं तो बहा ले जाना चाहती हैं बादलों की तरह। 
हम भी ठाने हैं मगर टूट कर बस बरसेंगे तेरे लिए।। 

"उस्ताद" डगर आसान कब कहाँ प्यार की रही।
लुटा देंगे यार तन-मन इस बार हम सांवरे तेरे लिए।।

@नलिनतारकेश 

Wednesday 21 July 2021

361:गजल: ख़ामख्वाह में

बस चल रही है तो चल रही जिंदगी ख़ामख्वाह में।
वरना तुम ही कहो क्या खाक बची ख़ामख्वाह में।।

हाथ मिलाना ही है दूभर बात करना तो छोड़ दीजिए।
खैरख्वाह बनने का शौक है बस खाली ख़ामख्वाह में।।

अपना वजूद है ही कितना कहो तो इस कायनात में।
फिर भी छोड़ते हैं कहाँ हम तेरी-मेरी ख़ामख्वाह में।।

कभी बारिश,कभी जाड़ा, कभी कड़ी धूप तो रहेगी। छूटती नहीं आदत मगर ये कोसने की ख़ामख्वाह में।।

हाथों से छूटती नहीं एकन्नी बगैर मोलभाव के।
नवाबों सी जताते हैं यूँ रंगबाजी ख़ामख्वाह में।।

जिन्दगी के मेले में खुद ही गुम हो गए देखो हम कहीं।
ढूंढते फिरते हैं मगर कैफ़ियत* अपनी ख़ामख्वाह में।।
*विवरण

महकता कस्तूरी सा वो तो है अपने ही भीतर कहीं पर।
लो भटक रहे "उस्ताद" जाने किस गली ख़ामख्वाह में।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday 20 July 2021

कविता: हरिशयनी एकादशी

आषाढ़ शुक्ल एकादशी श्री गणेश चातुर्मास का हो रहा। शयन क्षीरसागर शेषशय्या,श्री हरि का तभी तो हो रहा।।

विचारो पर क्या कभी भी क्षणिक,ईश शयन कर सकेगा?
वह तो है सदा को जागृत,बस कौतुक नया एक कर रहा।।

वस्तुतः मायाजाल तोड़ भोग-विलास त्यागें जीव सभी। बस इसकी ही प्रेरणा के लिए वो परीक्षा हमारी ले रहा।।

आचार-विचार सभी शुद्ध,वातावरण अनुरूप ढलें हमारे।
मात्र वह इसके लिए,चातुर्मास का विधान ऐसा रच रहा।।

साधना,दान,जाप का सभी में,यथाशक्ति कर्म चलता रहे।
त्याग,दया,प्रेम की हमें सीख,इसी बहाने वो हमें दे रहा।।

सृष्टि का आधार तप है,जो डिगाती नहीं धुरी जरा इसकी।
इसी बल-विवेक को अंतर्मन हमारे,जागृत प्रभु कर रहा।।

आत्मविश्वास से भरे हम,उसीके अंश हैं यह सत्य जान लें।
स्वयं को छिपा निमिष मात्र,कसौटी पर अपनी कस रहा।।

@नलिनतारकेश 

Monday 19 July 2021

360: गजल-बिना रगड़वाए एड़ियां

चाहतों का सैलाब अपना थमता कहाँ है।
तिजारत* का सिलसिला रुकता कहाँ है।।*व्यापार 

सांसे,दिमाग,जिस्म और न जाने क्या-क्या। 
खुदा का एहसान याद हमें रहता कहाँ है।।

मिट्टी,खाद,पानी डाल भी दो यार चाहे।
बिना दुलार,मनुहार फूल खिलता कहाँ है।।

बेसाख्ता गलबहियों में भर लेना अजीज को।
गम हो खुशी ये मंजर अब दिखता कहाँ है।।

झोली में है "उस्ताद" के नायाब हीरे।
बिना रगड़वाए एड़ियां वो देता कहाँ है।।

@नलिनतारकेश 

Sunday 18 July 2021

359: गजल खुदा भी कैसे कैसे

कभी मारता है तो कभी  पुचकारता है।
खुदा भी कैसे-कैसे हमें सुधारता है।।
हम फिर भी कहो ढीठ कहाँ कम ठहरे।
देख वो हरकतें हमारी सिर पीटता है।।
तकदीर के एक भरोसे बैठके शेखचिल्ली।
बिस्तर में बस लेट सपने रंगीन बुनता है।।
जमाने की हवा में जाने कैसा जहर घुल गया।
सच यहाँ अब कोई नहीं किसी की सुनता है।।
दावे तो बहुत हैं चांद-सितारे तोड़ लाने के।
असलियत में कौन,कहाँ खरा उतरता है।।
मिज़ाज इन बादलों का समझे भला कोई कैसे।
जेठ बरसे जो झूमके वहीं सावन भर रूठता है।।
हाथ पर हाथ धर यूँ न बैठिए "उस्ताद" जी।
खाली दिमाग कमबख्त बेवजह बहकता है।।

@नलिनतारकेश 

Monday 12 July 2021

कविता : माॅ शारदे

मांशारदे!सप्तसुरों की राग-रागिनीयां,आकर जरा बता दे।
रचि हैं जो शिव-गौरा ने सब,हमको आकर जरा सिखा दे।

कर्णप्रिय,मनभावन इनकी महिमा,मातेश्वरी हमें तू बता दे।     
 मीठी सुधारस पोषित वाणी का,तू अपनी रसपान करा दे।

उर रोमांचित धड़के दिव्यभाव से,ऐसा हमको तू महका दे। अंग-अंग पुलकित हो जाए, बस ऐसा मनबोध उमगा दे।।

भाव समाधि लग जाए श्री चरणों में तेरे,ऐसी लौ लगा दे।
 जीवन सफल हो जाए अब तो मेरा ऐसी कृपा बरसा दे।।

हृदय सरोवर निर्मल भावों से,तू मेरा परिपूर्ण आज बना दे।
निश्छल"नलिन"खिले सहस्त्रदल,ऐसा अनहद नाद जगा दे।।

@नलिनतारकेश

Saturday 10 July 2021

कविता: क्या इतना सरल है?

क्या इतना सरल है ?
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प्रेम का प्रकटीकरण कहो करना क्या इतना सरल है?  रोकना अपने हृदय के उद्गार सारे क्या इतना सरल है?

पदत्राण बिना चलना अंगारों पर क्या इतना सरल है ?शुष्क अधरों पर मुस्कान ओढ़ना क्या इतना सरल है?

प्रेम यदि हो अलौकिक तो थाह लेना क्या इतना सरल है? आत्मसात हो करना द्वैत चर्चा करना क्या इतना सरल है?

निश्छल छल- प्रपंच मुक्त प्रेम करना क्या इतना सरल है? तेरा-मेरा,उसका-इसकाभुलाना सब क्या इतना सरल है?

पंक के बीच रह खिलना नलिन सा क्या इतना सरल है? देखना सबके हृदय-घट में,परम-ब्रह्म क्या इतना सरल है?

@नलिनतारकेश 

Friday 9 July 2021

358:गजल -समीकरण ज़िन्दगी के

समीकरण जिंदगी के क्या खाक सुलझायेगा आदमी।
हर गांठ खोलने में उसे बस और उलझायेगा आदमी।।

जोड़,घटाना,गुणा,भाग भला कब तक होगा मुमकिन।
लगाने से गणित बस खुद को ही भटकायेगा आदमी।।

लहरों की मानिंद बस बहते रहेगा जो यहाँ से वहाँ।
कभी ना कभी किनारा तो पा ही जाएगा आदमी।।

फकीरों सी मस्ती बहेगी जब कभी अपने भीतर।
कहो फिर भला कैसे ये चोला भरमायेगा आदमी।।

जिस्म मान खुद को तुझसे जुदा किया है यहाँ सबने।
रूह में बसे है रब "उस्ताद" ये  समझाएगा आदमी।।

@नलिनतारकेश 

Monday 5 July 2021

कविता : यह सच है

यह सच है,रिक्त उदर,कविता से कभी नहीं है भरता।
भावों का पर वही,बहुमूल्य सृजन,भीतर में है करता।।

श्रृंगार भी कहो कहाँ कब तक,झुर्रियां रोक है सकता।
काल तो सदा ही निर्विकार,अपना प्रभाव है छोड़ता।।

मदहोश नित्य ये चपल चित्त,प्रकृति सा है बहता रहता।
पल में तोला,पल में माशा,बस इसका मिजाज बदलता।।

बुद्धिजीवियों का भरपूर सैलाब,जगह-जगह है दिखता।
जो वृक्ष की छाँह खड़े होकर भी,जड़ को काटता रहता।।

जीवन अपना रेत के जैसा,मुठ्ठी से बरबस है फिसलता।
विवेकवान बस वही एक जो,दोनों हाथ उलिचता रहता।।

@नलिनतारकेश 

Sunday 4 July 2021

357:गजल-परत दर परत

परत दर परत कितने चेहरे छुपाए है आदमी।
खुद को खुद के दीदार से बचाए है आदमी।।

अंधेरों में बार-बार बहकने के बावजूद भी।
जाने क्यों उसी ओर कदम बढ़ाए है आदमी।।

रास्ते हैं बंद सारे अपनी ही बेवफाई के चलते। 
उसी ओर फिर भी टकटकी लगाए है आदमी।।

यार जानता है सब,इतना भोला तो नहीं है।
जमीर भी अपना मगर बेच खाए है आदमी।।

फना होती है बुलबुलों के मानिंद यहाँ हर शै। 
झूठी शानो-शौकत फिर भी जताए है आदमी।।

शागिर्द भला बनाइए किसी को काहे आजकल।
याद "उस्ताद" को छठी का दूध  दिलाए है आदमी।।

@नलिनतारकेश

Friday 2 July 2021

356: गजल-जूझना तो होगा

जन्नत देखने की खातिर यार मरना तो होगा।
पाने को अपनी मंजिल हमें जूझना तो होगा।।

हूरें मिलें न मिलें चाहे ख्वाबों में कभी।
रंग ख्वाबों में हर हाल भरना तो होगा।।

ये सफर कड़ी धूप भरा है जिंदगी का।
उम्मीदे दामन मगर थामना तो होगा।।

जाति,मजहब के जाल में छटपटाने से बेहतर।  
भरके इंसानियत हवा में साथ उड़ना तो होगा।।

खुला आकाश नीला है प्यारा देखो तो सही।
चश्मा आँखों से काला अब हटाना तो होगा।।

"उस्ताद" तुझमें मुझमें है भेद जरा सा भी नहीं।  
बस तहे-दिल बजता एकतारा सुनना तो होगा।।

@नलिनतारकेश