Saturday, 24 July 2021

गजल:363-महकाता दिखा

डायरी का पन्ना पुराना फड़फड़ाता दिखा।
अरसे बाद दिल ये बहुत गुनगुनाता दिखा।।

चाहतों की मट्टी जब भी बीज को खाद-पानी मिला। 
हर तरफ फूलों का सिलसिला खिलखिलाता दिखा।।

चश्मे नूर जब आए मुद्दतों बाद महफिल में हमारी। 
हर कोई कानों में एक दूजे के फुसफुसाता दिखा।।

दुनिया का दस्तूर रहा है आज नहीं सदा-सदा का। 
जिससे भी काम पड़ा पाँव उसके सहलाता दिखा।।

चलन अब छूट गया नेकी कर कुएं में डालने का।
इश्तहार हर कोई राई से काम के गिनाता दिखा।। 

नेकी-बदी,शुक्र-नाशुक्री भुला "उस्ताद" सबको। 
बस हर घड़ी रूह को हरेक की महकाता दिखा।।

@नलिनतारकेश

No comments:

Post a Comment