Sunday, 25 July 2021

364:गजल-रोशनदान तो खोलिए

दरवाजे खिड़कियां बंद कर  घुटन न ओढ़ा कीजिए। 
हुजूर थोड़ा ही सही रोशनदान तो अपना खोलिए।।
 
हर किसी में होती है खासियत जरूर कुछ न कुछ।
यूँ ही नहीं हर एक को बस एक आँख से तौलिए ।।
 
फूल हैं देखिए गुलशन में हजारों-हजार किस्म के।
जुदा रंग,खुशबू,बनावट सब को तरजीह* दीजिए।।
*वरीयता

फासले हो ही जाते हैं दूरियों के सफर में चलते-चलते।
थपेड़ों ने वक्त के डाली जो हर गिरह* प्यार से खोलिए।।
*गाँठ 

"उस्ताद"जो ठान ले आदमी तो क्या नहीं है मुमकिन। 
लकीरें बस तदबीर* से हाथों की अपनी बदल डालिए।।
*पुरूषार्थ 

@नलिनतारकेश

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