Wednesday, 28 July 2021

366:गजल-हर हद पार हुई है

निगाह जबसे,संग उसके चार हुई है।
बेकरारी की हद हमारी,हर पार हुई है।।

मस्ती का दरिया,सैलाब बन बह रहा।
बिन पिए ही,बेहिसाब खुमार हुई है।।

जहाँ थी रेत दूर तलक,हलक सूखता था। 
हर रास्ते गुलजार वहाँ,अब बहार हुई है।।

उसे भी मंजूर है लगता,मोहब्बत हमारी। 
लबों पर हंसी तभी तो,गुले कचनार हुई है।।

"उस्ताद" चर्चा किया नहीं कभी तेरा,किसी से।
मगर जाने कैसे बात ये अपनी इश्तिहार हुई है।।

@नलिनतारकेश 

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