Monday, 19 July 2021

360: गजल-बिना रगड़वाए एड़ियां

चाहतों का सैलाब अपना थमता कहाँ है।
तिजारत* का सिलसिला रुकता कहाँ है।।*व्यापार 

सांसे,दिमाग,जिस्म और न जाने क्या-क्या। 
खुदा का एहसान याद हमें रहता कहाँ है।।

मिट्टी,खाद,पानी डाल भी दो यार चाहे।
बिना दुलार,मनुहार फूल खिलता कहाँ है।।

बेसाख्ता गलबहियों में भर लेना अजीज को।
गम हो खुशी ये मंजर अब दिखता कहाँ है।।

झोली में है "उस्ताद" के नायाब हीरे।
बिना रगड़वाए एड़ियां वो देता कहाँ है।।

@नलिनतारकेश 

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