Thursday, 29 July 2021

367:गजल- फिलसफी अपनी

सिलवटें चादर की कर रही मुखबिरी अपनी।
करवटें दर्द की बताती नकली है हंसी अपनी।।

दिल को बहलाना जिगर का काम बड़ा है।
मौज लेती है पूरी खुदा की खुदाई अपनी।।

गलत नहीं है कुछ तो सही भी कुछ नहीं है यहाँ पे।
दानिशमंद समझ आए न ये तेरी फिलसफी अपनी।।

देखने का आ जाए अंदाज तो बदलती है तस्वीर सारी।
गम-गम नहीं रहता,खुशी भी नहीं रहती कभी अपनी।।

वजूद है उसका जर्रे-जर्रे पर कहते हैं "उस्ताद" सभी।
लौ लगे बिन मुलाकात उससे कभी होती नहीं अपनी।।

@नलिनतारकेश 

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