Friday, 4 November 2022

475: ग़ज़ल:-चिंगारी को एक अदद

देवोत्थानी एकादशी की सबको बहुत बधाई 
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चिंगारी को एक अदद झौंके की तलाश जारी है।
लौ लगनी तेरे दीदार की अभी भी यार बाकी है।।

रूह तो सिसकियां भर के जार-जार रो रही है।
मांग भर सकूंगा कभी इसकी ये उम्मीद पूरी है।।

जन्मों से कस्तूरी की दौड़ में बस भटकता ही रहा हूँ।
शुक्र है पता तो चला वो कहीं अपने भीतर ही रही है।।

ख्वाहिशों के जंगल में ख्वाब कब तलक बटोरें कहो तो। हकीकत में जन्नत की राह इतनी आसान होती नहीं है।।

बस एक बार दामन तेरा मिल जाए सर छुपाने को।
ये दिले अरदास अभी कसम से "उस्ताद" अधूरी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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