Thursday, 10 November 2022

ग़ज़ल:477=इल्जाम मढ़ें किसपे

ऐशोआराम को बाहों में भर लिया जबसे हमने।
चुम्बनों से कसम से लहूलुहान कर दिया उसने।।

कहते तो क्या कहते लब सिल गए थे हमारे।
बड़े अदब से जब इकराम किया था सबने।।

ठोक-बजाकर चाहे जितना परख लो किसी शय को।
मौज लेने पर ही आए अगर खुदा तो कोई  क्या करे।।

निमुजी* ही जो होने लगे दुनियावी मसाइल**से हमें।*उच्चाटन  ** दिक्कतों से
रो,हंस,खीझ कर कब तलक यहाँ दिल बहलाइये।।

मुरझाए गुलाब की पंखुड़ियां भी सहेज रखी हैं। 
तेरे प्यार की बात जमाने को दिखाने के लिये।।

तेरे शहर की हर गली "उस्ताद" पहचानने लगी है। 
जो तू ही कन्नी काटे,बता फिर इल्जाम मढ़ें किसपे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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