Monday, 17 August 2015

342 - मन-मंदिर को तिरंगा रंगा दें



स्वतंत्रता का जयघोष जो गगन में हो रहा आज उल्लास से 
आओ मिल कर हम सभी उन स्वरों को अब एक आकार दें। 
जाने कितने वर्ष बीत गए राह पथरीली पर चलते हुए मगर 
आओ आज मिल कर हम सभी डगर प्यारी फूलों की बना दें। 
वृद्ध,युवा,बाल जाति-पाति के भेद सब छोड़ समवेत उठकर
आओ मिल कर हम सभी परस्पर नया एक जोश जगा दें।
दुनिया जो लिख रही गाथा नित नयी ऊंचाई की हर दिशा में 
आओ मिल कर हम सभी देश अपना उसमें अग्रणी बना दें। 
प्यार,मोहब्बत,भाईचारा ये तो हमने हर रोज घुट्टी में है पीया 
आओ मिल कर हम सभी इस संस्कार से धरा को स्वर्ग बना दें।
रंग तो बहुत हसीन हैं इस दुनिया में इन्द्रधनुष से फैले हुए   
आओ मिल कर हम सभी मन-मंदिर को बस तिरंगा रंगा दें। 

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