Tuesday, 18 August 2015

343 - राम-मैं खड़ा चतुष्पथ पर



राम-मैं खड़ा चतुष्पथ पर 
किंकर्तव्यविमूढ़ बन कर। 
स्थितियां परिस्तिथियाँ अधिक क्लिष्ट 
जैसी थीं अर्जुन के वक्त पर। 
तो भला क्यों करते हो विलम्ब 
आओ चक्षु खोलने श्री कृष्ण बन कर। 
यद्यपि नहीं रहा कभी पुरुषार्थ वैसा 
जो हुआ हो विस्मृत आ इस पथ पर। 
पर तुम तो ठहरे वही अनित्य करुण मीत 
सौगंध बंधे-अरी मर्दन,सदैव प्रस्तुत हो कर। 
जीव की एक व्याकुल पुकार पर 
ह्रदय की गहरी एक आह पर। 
तो आओ शीघ्र अत्ति शीघ्र नाथ,सखा 
क्लीवता मेरी,जग उपहास करेगा तुम पर। 

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