Monday, 23 February 2015

318 - तू तो है भाव का भूखा

                                                               
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तू तो है भाव का भूखा 
मैं रसहीन-शुष्क हूँ।  
तू पर-कातर,कृपा-पुंज 
मैं खुद में क्यों निमग्न हूँ। 
तू है जब भला भक्त सबका 
मैं कहाँ,कैसा भक्त हूँ। 
हर साँस पर तेरा नियंत्रण 
मैं कहां करता कुछ कर्म हूँ। 
यूँ ही कृपा करते रहना 
मैं तो बस तेरा एक क़र्ज़ हूँ। 

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