Tuesday, 10 February 2015

310 दिल्ली - समर


लव,कुश+अग्र (कुशाग्र) कूट बुद्धि से ही मात्र देखो
स्तंभित हो गया स्वर्ण कमल दिग्विजयी रथ
तथाकथित "अमित" - पुरषार्थी श्री "नरेंद्र" महान का।

बस चुनावी जुमलों के शब्द-भेदी बाण से ही
जीतने निकले जो समर -भयंकर, उतावली में
होना था हश्र यही,"हाथ" पर "हाथ" धर बैठने का।

प्रबल जूथ  नारे लगाते, दसों - दिशा निकल पड़े
दाँतो को किटकिटाते, उग्रगति से भड़भड़ाते हुए
नतीजा मिला, बेपरवाह अपने ही "दल" को लतियाने का।

एक से एक छत्रप, नायक, मठाधीश बड़े-बड़े
धूल चाटते, मुँह की खाते गिरे अतुल वेग से
हतप्रभ हुए विश्लेषक सभी,देख रुख परिणाम का।

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