Wednesday, 11 February 2015

311 - तारनहार हम सबके



साईं अब तो खोलो,कृपा के द्वार तुम अपने 
सूरज सा उड़ेलो प्रकाश,उर-जन में अपने।  
षड- रिपु से क्लांत हो गए हैं, "नलिन-दल"  सारे 
देखें जब श्री- नख -ज्योति तो,खिल जाएंगे सारे। 
वसंत का सा हर दिन,जीवन में मधुमास रहे 
पीत,पोपले,मुरझाये मुख में भी,मुस्कान रहे। 
हर तरफ छाए यूँ तो,बस एक जलवे तेरे 
दीदार करुँ जब आ कर खोले,नैन तू मेरे। 
"तारकेश" तुम ही तो हो तारनहार हम सबके 
रंग दो अपने श्याम रंग में,जल्दी से अब आके।  
   

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