Thursday, 19 February 2015

316 - वृन्दावन बनी ये सृष्टि सारी



राधे-श्याम कहते-कहते
वृन्दावन बनी ये सृष्टि सारी।
हर गलियों,हर मोड़ों पर
दिख जाती है तेरी झांकी।
कहीं लाल-गोपाल कान्हा की
लीला मधुर है दिख जाती।
कहीं-कहीं राधा रानी जी
खूब बनी-ठनी हैं इतराती।
ग्वाल-बाल संग हंसी-खुशी
कहीं चौपड़ी है जमी हुई।
तो गोपी-बाला संग कहीं
रास रचाते गिरधारी।
ता ता थय्या,धुम तिरकिट धुम
नर रूप बना नाचे ये जोड़ी।
धन-धन भाग मैं अपने जाऊँ
खूब घुमाई तूने ये नगरी।
बांकी छवि के दर्शन से तेरी
नैन #नलिन#निर्मलता आई।

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