Wednesday, 18 February 2015

315 - श्रीे रामकृष्ण परमहंस





नेत्र से सदा बहती अकूत करुणा तथागत बुद्ध की सी 
कर्म में मर्यादा बड़ी पालन करी प्रभु श्री राम की सी। 
कृष्ण सरीखे क्या खूब अलौकिक कथा रचते नित्य ही 
कैसे कहूँ सम्पूर्ण गाथा जब मौन रहते आप खुद ही। 
"नरेंद्र"को पहचानकर कर "विवेक-आनंद" की दी शक्ति 
जाने कितनोँ को फिर बाँट दी आपने मुक्त-हस्त भक्ति। 
माँ "शारदा" संग निभाई नीर-छीर सी "परमहंस" प्रीती 
विश्व में अनूठी "सर्व-धर्म-समभाव"की तेरी रही नीति। 
विषपान कर संसार का नीलकंठ बन भूले सुध खुद की 
पत्थर "ह्रदय"मधु रस बहा जब छाप रखी श्री चरन की। 
धन्य-धन्य जगत सारा देख आचरण की नई रीति। 
खुद नचा कर हाथ डोरी शिष्य दल दी अमर कीर्ति। 

No comments:

Post a Comment