Monday, 20 July 2015

327 -सपने हर कदम टूटते हैं....तेरे-मेरे

सपने हर कदम टूटते रहे,हर बार कांच से  तेरे- मेरे
चल ये भी लिखा रहा होगा,नसीब में भोगना तेरे-मेरे।

हर कोई अपने में इस कदर मशगूल दिखता है यहाँ
कोई मिले,किससे मिले,भला कब तक यहाँ यार मेरे।

बारिश जो हुई रात बाहर,छींटे भिगो गए कुछ मुझे
ये अलग बात है ख्वाब अधूरे,ठगे से रह गए सब मेरे।

आकाश छूने के लिए,नारियल से लम्बे तो होते चले गए
भाग्य के श्रीफल मगर, टूट कर जमीं पर बिखरते रहे मेरे।

"उस्ताद" तुम्हारी तो हर बात ही अलहदा है जमाने से
ग़मों का बोझ मेरा,उठा  चलते रहे हो हर घड़ी साथ मेरे। 

No comments:

Post a Comment