Tuesday 21 July 2015

328 - योग शक्ति




भारत माँ की योग शक्ति का जगह-जगह जयकार हुआ
निखिल चेतना का फिर ऐसे,जन-जन दिव्याभास हुआ।

जगदगुरु के रूप में अपने,राष्ट्र का पुनः श्रेष्ठ सम्मान हुआ
योग दिवस के श्रीगणेश से योग का अप्रतिम विस्तार हुआ।

असंख्य मन,प्राण,देह का समवेत अकल्पित योग हुआ
तुमुल उठे उल्लास से फिर,धरा का कण-कण पावन हुआ।

नर-नरेंद्र हो गए सभी,कायाकल्प कुछ ऐसा हुआ
धर्म-जात,ऊँच-नीच का,भेद समूल फिर नष्ट हुआ।

इंद्रप्रस्थ पर नई-नई सी भोर लिए,दिनकर का प्रकाश हुआ
साथ चलेंगे हाथ पकड़ सब,स्वर्णिम भविष्य आश्वस्त हुआ। 

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