Wednesday, 29 July 2015

332 - भारत कलाम





सरल-सहज,मोहक,निर्मल व्यक्तित्व तुम्हारा
धरा उदास आज,बिछुड़ा जबसे साथ तुम्हारा। 

करें परिश्रम हम जी-तोड़ से,आँखों में हो सपना न्यारा
भारत बने विश्व-गुरु पुनः से,यह था स्वप्न तुम्हारा। 

धर्म-जाति की संकीर्ण सोच से,सदा किया किनारा 
मानव का देवत्व उभारें,बस एक था लक्ष्य तुम्हारा।

ज्ञान-विज्ञान रहा अप्रतिम,बुद्धि-लाघव तुम्हारा 
बाल-समान बड़ा निष्कपट,कोमल ह्रदय तुम्हारा।

"भारत-रत्न"अब्दुल कलाम,सब वंदन करें तुम्हारा
सम्पूर्ण विश्व में सदा रहेगा,चिरंतर नाम तुम्हारा। 









No comments:

Post a Comment