Wednesday 22 July 2015

329 - राम -कृपानिधान




राम -कृपानिधान 
तुम जगत आधार। 
कब सुनोगे व्याकुल पुकार 
विकल तो  हुए 
मेरे तन,मन,प्राण।
हर छन ,हर पल काटता
बनाता मुझे बेहाल। 
किंकर्तव्यविमूढ़ आज 
कैसे करूँ भविष्य निर्माण। 
 सोचो न,करो अब 
शीघ्र  तुम "नव प्रभात"। 
दे दो कृपा का  
तुम मुझे वरदान। 
मैं अकिंचन क्या दूँ 
सिवा एक  प्रणाम। 
ह्रदय घट का 
 भयभीत,काँपता 
नन्हा उपहार। 
स्वीकार हो यदि  तो  
और भी करुँ अर्पण 
अवगुणों का विपुल भण्डार।
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