Thursday, 15 October 2015

मेरे अंतर्मन में



राम तुम हो मेरे अंतर्मन में 
मेरे क्या सबके ही उर में। 
फिर भी लेकिन ये क्यों होता 
दिखते नहीं कभी तुम मुझ में। 
यदि हो रहते,नहीं हो दिखते 
तो भी ऐसी कोई बात नहीं । 
पर ये तो सोचो,जब तुम बसते  
फिर क्यों रहते पाप ह्रदय में। 
जो भी हो कुछ तो है गड़बड़ 
जिसका करो अब इलाज हरे। 
वरना तो मेरा क्या,बेशर्म मै ठहरा 
होगा प्यारे!तेरा ही उपहास जगत में। 


No comments:

Post a Comment