Monday, 2 March 2015

ग़ज़ल-77 फलों से लद गया

फलों से लद गया जो दरख़्त आम का।
सहा तो होगा इसने वक्त घाम का।।

यूँ ही नहीं सबके दिलों में बस रहा होगा।
नब्ज़ पर हाथ होगा उसके जरूर राम का।।

कुछ है बात जो मिटती नहीं हस्ती हमारी।
दौड़ता रहा है लहू अमन के पैगाम का।।

वो बेबस,लाचार जी रहा है तन्हा अपनों में।
अरसे से मर गया है यहां चलन दुआ-सलाम का।।

बाँध पाँव अंगारे और ले दुआ के फूल चले। 
है वारिस असल वो अपने "उस्ताद" के कलाम का। 

@नलिन #उस्ताद

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