Wednesday, 4 March 2015

324 - भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम



भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम 
मैं तो रंग में रंग चुकी तेरे ही एक श्याम। 


अब सब छोड़ लोक-लाज,आयी तेरे पास 
बाहों में भर ले मुझे, एक यही अब आस। 


जहाँ देखती खड़ा वहीँ तू,रोके मेरी राह 
पकडूँ तो छल कर,बेगि छुड़ावत बांह।


दिनभर भटक-भटक कर थक जाते हैं पाँव 
जाने कब आओगे बसने मेरे दिल की ठाँव। 


"नलिन" नयन व्याकुल हैं कबसे,ओ निष्ठुर दिलदार 
देर करो न पल भर अब तो, सुन लो करून  पुकार। 



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