Sunday, 13 September 2015

350 - मुण्डक उपनिषद से (हिंदी दिवस पर )


गुरुवर अत्यंत विनत भाव से 
पूछता हूँ एक प्रश्न आपसे 
ज्ञान कौन सा है कहिये मुझसे
समस्त विश्व जान लूँ जिससे।
  


ओम ,परम पूज्यनीय आप हमारे  

 करते हैं प्रार्थना मिल हम सारे 
कान सुने हमारे जो शुभ हो
 देखें नेत्र वही जो शुभ हो
 यज्ञादि कर्म हमारे शुभ हों 
 दक्ष बनें,अंग-प्रत्यंग पुष्ट हों
जीवन अवधि योग पूर्ण हो
देव सभी तेज़ बुद्धि बलदायक हों 
सबके प्रति कल्याण भाव हो। 
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निः सीमिता के अनंत तट पर सर्वत्र 
यह संसार तो है एक कण मात्र। 
तो करो जरा ठीक से विचार 
कहाँ टिकता है "स्व" का सार। 
जन्म-मृत्यु,प्रकाश-अन्धकार 
दिन-रात,सत-असत का गुबार।
उत्कट द्वैध,जो अंशतः दृष्टिगोचर मात्र 
अंततः तिरोहित होता अक्षय ब्रह्म पात्र। 
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परमात्मा तो है सनातन,शुद्ध 
अंतर,बाह्य,सर्वत्र व्याप्त,बुद्ध। 
जीवन-मृत्यु दोनों से परे  
साकार-निराकार कौन भेद करे। 
असंख्य ब्रह्माण्ड उदरस्थ उसके 
निमिष में जन्म लेते,मरके। 
स्वांस-प्रच्छवास,इंद्री-मन हमारे 
पंच-तत्व के गुण विभाग सारे। 
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