Tuesday, 13 December 2022

485:ग़ज़ल: फासले मिटते नहीं

मैले दामन को कभी वो अपने देखते नहीं। 
यूँ सिखाने में शउर गैरों को हिचकते नहीं।।

तेरी जुल्फ में गुल सजाने की ख्वाहिश तो थी ए ज़िन्दगी। जो मुकद्दर के सिकंदर होते यारब तो हम भी चूकते नहीं।

शतरंज की बिसात पर भला कौन राजा,वजीर,प्यादा। कठपुतलियों सी नचाती उंगलियों से कोई बचते नहीं।। 

बहुत लंबा सफर है और कहो तो है बहुत छोटा भी।
वक्त की पैमाइश के हमें सबब याद सारे रहते नहीं।।

जिंदगी के एक  छोर पर तू और दूसरी तरफ हम खड़े हैं। तुझसे आंख चार कर के भी "उस्ताद" फासले मिटते नहीं।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

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