Friday, 17 January 2020

310:गजल-रागे उल्फ़त

रागे उल्फ़त जो जहाँ में छेड़ दिया उसने। 
नफरतों को दिलों से खदेड़ दिया उसने।।
वो दिखा जो मुद्दतों बाद एक महफिल में।
जख्मों को पुराने सब उधेड़ दिया उसने।। 
दरे हयात* खोलने को ही उठा था वो तो।*जीवन का मार्ग 
ठिठक फिर जाने क्यों भेड़ दिया उसने।।
बंजर दिखा जहां भी जमीन का टुकड़ा।
सींच के प्यार से बो एक पेड़ दिया उसने।।
किया था "उस्ताद" ने बस इश्क का जिक्र।
खबर में मगर कुछ उलट ही घुसेड़ दिया उसने।।
@नलिन#उस्ताद

No comments:

Post a Comment