Wednesday, 1 March 2017

अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम फर्ज़ी सेक्युलरवादी



जला दो किताबें सारी जो बनाती हैं तुम्हें फ़र्ज़ी सेक्युलरवादी
जब समझते ही नहीं तुम क्या है देशभक्ति,कौन है आतंकवादी।

किस मिट्टी के बने हो क्यों है तुम में घटिया षड्यंत्रकारी होशियारी
ज़मीर बेच,कुत्सित घृणित सोच से शर्मसार करते हो शहादतें सारी।

अपनी रोटी सेकने, शराब,चंद गोश्त के टुकड़े,चाँदी की तश्तरी
माँ भारती के आँचल पलते - बढ़ते, करोगे क्या अब यही गद्दारी।

काटोगे पेड़ क्या जिस पर बैठ मांगते हो अभिव्यक्ति की आज़ादी
जड़मूर्खो बहुत हो गया अब नहीं सही जाती हमसे देश की बरबादी।  

निष्पक्ष हो अगर तुम और हो इतने ही बड़े उदारतावादी 
अपनी सहुलियत से क्यों देश को बरगलाते हो अवसरवादी।

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