Friday, 12 August 2022

447: ग़ज़ल

उतना ही जानिए जितना जरूरी है। 
यूँ तो सब यहाँ बस मगजमारी है।।

जाने कितने तालों में बंद करके जिंदगी।
हमने खुशियां खुद से ही अपनी रौंदी हैं।।

एक बार पीठ थपथपा तो दो जरा प्यार से।
हार को भूल जीत जाता हर खिलाड़ी है।।

ख्वाबों के महल खड़े होते नहीं बगैर सींचे पसीने से। 
देनी तो पड़ती है हमें कभी न कभी कोई कुर्बानी है।।

यार तेरी वो खनक अब सुनाई नहीं देती आवाज में।
बता तो सही यूँ दोस्तों से बातें छुपाई नहीं जाती है।।

आबे हयात* भरा जाम मिल रहा है "उस्ताद" सबको। 
सही मायने में सजी अब महफिल जश्न ए आजादी है।।
*अमृत 

नलिनतारकेश @उस्ताद

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