Friday, 26 August 2022

456:ग़ज़ल

मुश्किलें सबकी अपनी-अपनी देखो मुख्तलिफ बड़ी हैं।
किसी को रात में नींद तो किसी को दिन में चैन नहीं है।। 

हीर-रांझा,लैला-मजनू से किस्सों की बात छोड़ो।
तब से अब तलक तो बहुत दुनिया बदल चुकी है।।

सूरज,चांद,सितारे आकाश में बदहवास हैं सारे।
इस जहान से बढ़कर बेचैनियां ऊपर बढ़ गई हैं।।

फासले हैं तो अब करें भी तो क्या करें कहो।
जमाने के बदले हुए चलन की सच्चाई यही है।। 

फटकता नहीं "उस्ताद" घर में कोई भी किसी के। 
जब तलक हद से ज्यादा मजबूरी ही न वो बनी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

No comments:

Post a Comment