Wednesday, 31 August 2022

460: ग़ज़ल

ख्वाबों का तिलिस्मी काजल लगा लो आँखों में।
मुस्कुराना तुम भी सीख जाओगे मुश्किलों में।।

गंडे,ताबीज,चारागर की जरूरत ही न पड़ेगी तम्हें।
जो देखोगे असल वजूद अपना खुद की निगाहों में।।

रूप,रंग,किरदार जाने कितने बिखेरे हैं दुनिया में।
मौत ही मगर हमको सच्ची लगी सारे छलावों में।।

देते हैं सदा* जब दिल से उसको  जलजलों में घिरके।आता है वो मसीहा बनके  बचाने हमको मुसीबतों में।।
*आवाज 

मिली जो कहीं "उस्ताद" निगाहें माशुके-हकीकी* से।*खुदा
धरी रह जाएगी सारी ये तुम्हारी मयकशी* मयकदों** में।। * शराब पीना     **शराबखाना

नलिनतारकेश @उस्ताद

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