Thursday, 16 September 2021

392: गजल- उस्ताद जी सोमरस गटक रहे

पुरजोर जोश में कल रात से बादल बरस रहे।
खिले तन-मन सभी जो हाल तक झुलस रहे।।

कहो पता था किसे गजब ऐसा भी हाल हो जायेगा।
देख सैलाब पानी का सब रुकने को इसके तरस रहे।।

देता है छप्पर फाड़ के खुदा जब अपनी पर आए तो।
मुँह छुपाए खड़े हैं सभी कल तक जो थे तंज कस रहे।।

तरबतर हो गए घर की दहलीज लाँघी जो उन्होंने।
मुसाफिर तो हर दिन के जैसे बस यहाँ परबस रहे।।

उठाना अंदाज़े लुत्फ हर आदमी का तो जुदा रहा है। 
देख मौसम सुहाना "उस्ताद" जी गटक सोमरस रहे।।

@नलिनतारकेश

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