Thursday 9 September 2021

386:गजल -निगाहों से

जरूरी नहीं है जुबां से ही सब बोला जाए।
आओ निगाहों से कभी तो कुछ सुना जाए।।

लफ्ज़ निकलते हैं तो कुछ बेसुरे भी होते हैं।
सो चलो अब आंखों से ही सुरमई हुआ जाए।।

दिल समझता है ज्यादा गहराई से ईशारों का ककहरा। 

हुजूर दावा ये आजमाइश अब करके देख लिया जाए।।

नैन हों काले,भूरे जैसे भी,होने लगते हैं गुलाबी।
सामने जो अपने महबूब का दीदार किया जाए।।

कहो कौन सी अदा जो निगाहें नहीं फुसफुसाती हैं।
बस जरूरी है इन्हें सलीके औ सुकून से पढ़ा जाए।।

निगाहों के रस्ते ही मिलकर दिल से दिल धड़कते हैं। 

इससे ज्यादा कहो और क्या "उस्ताद"कहा जाए।।

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