Saturday, 4 September 2021

383 - गजल:गुफ़्तगू ए दिलदार

तबले की थाप संग जुगलबंदी झंकार ए सितार हो रही। अपने महबूब से निगाहें जबसे मुद्दतों बाद चार हो रही।।

दिल ए आसमां में इंद्रधनुषी रंग बिखर गए हैं हर तरफ। देखिए उनसे पहली ही मुलाकात कितनी शानदार हो रही

परिंदे चहचहाने लगे अरमानों के फिजा में घोलते शरबत।
यूँ अभी तो शुरुआत भी नहीं गुफ्तगू ए दिलदार हो रही।।

कदम चलते हैं कभी तेज-तेज,तो कभी सहम जाते हैं।क्या कहेंगे,कैसे कहेंगे बस यही सोच हर बार हो रही।।

लबों पर उनका नाम दिल में जुनून लिए फिरते हैं अब तो। बनाने उन्हें "उस्ताद" अपना लगन हद से पार हो रही।।

@नलिनतारकेश

 

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