Wednesday 22 September 2021

396: गजल- मोबाइल मीनिया

मोबाइल मीनिया 

ये कौन सा खिलौना लग गया है हाथ हमारे।
इशारों पर अब जिसके हम खुद ही हैं नाचते।।

आए-जाए कोई या बैठे बगल सब अपनी बला से।
हम तो बस लुत्फ उठा रहे घर में बैठ जमाने भरके।।

सूझता अब कुछ नहीं रात है कि दिन पसरा हुआ। 
लगता यहीं सारी दुनिया आ गई हमारे शिकंजे में।।

अपनी अलग एक दुनिया बसा ली सबने अब तो।
हो मगन उसी में सक़ते के आलम* डूबे दिख रहे।।
*समाधि की अवस्था

 गूगल बाबा ने "उस्ताद" के इल्म को ठंडा कर दिया।
अब तो आता ही नहीं कोई उनके हाथ-पांव दबाने।।

@नलिनतारकेश

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