Friday, 10 September 2021

387: गजल-मां कहाँ अब लोरी सुनाती है

बिस्तर पर जाते ही नींद नहीं आती है। 
मां कहाँ आकर अब लोरी सुनाती है।।

बीत गया बचपन जो जमाने के पैमाने से।
अभी भी उसकी याद कुछ गुदगुदाती है।।

आईने में देखा तो उम्र कुछ ढलती दिख रही।
निगाह मगर आज भी उतनी ही शरारती है।।

यारी-दोस्ती,इश्क-मुश्क को याद अब क्योंकर करें।
बिन बुलाए मेहमान सी वो तो जेहन आ ही जाती है।।

आँखों में काला चश्मा चढ़ा भी लें तो क्या हासिल।
सर चढ़के मट्टी की महक राज सब गुनगुनाती है।।

तजुर्बा बढ़ा तो सवाल भी हर कदम जिरह करने लगे।
सो कहो "उस्ताद" कहाँ पहले सी नादानी निभती है।।

@नलिनतारकेश

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