Sunday, 15 December 2019

राम भरत जी

मर्यादा की उत्कृष्ट,पराकाष्ठा हैं अपने राम जी।
तो समर्पण की,एकनिष्ठ प्रतिमूर्ति हैं भरत जी।।
वचन-पालन,वर्ष चौदह,गहन-विपिन भटकते हैं राम जी। चरण पादुका की,सेवा में तत्पर,सतत रहते हैं भरत जी।। कोल-किरात,रीछ-वानर,दुलारते सभी को तो हैं राम जी। 
बन रामसेवक,सकल प्रजा का ध्यान,रखते हैं भरत जी।।   जीत के रण,निशाचर-विहीन धरा को बनाते हैं राम जी।
अयोध्या को बस प्रेम और प्रेम से संवारते हैं भरत जी।।
विभीषण,सुग्रीव को राजपाट-अखण्ड,दिलाते हैं रामजी।
राजमद पंक से तो,"नलिन"से अछूते हैं,अपने भरत जी।।
एक छन राम को मन,बुद्धि,वाणी न बिसारते हैं भरत जी। आँखों में भरत को पुतली सा तभी तो सजाते हैं राम जी।
@नलिन#तारकेश 

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