Wednesday 11 December 2019

हुआ नाद ब्रह्म से

हुआ नाद ब्रह्म से,समस्त सृष्टि का आविर्भाव है।
तारकेश-महादेव के डमरू से,बस ये संभाव्य है।।
सप्त स्वरों के विविध श्रृंगार का,ये अद्भुत परिणाम है।
सुर,लय,ताल छंदबद्ध सृष्टि का,रचा समस्त विधान है।। नाभिकीय विखंडन या संलयन से,हुआ काल का प्रवाह है। 
नीलकंठ त्रिनेत्र की,पलक खुली-बंद का,वही तो सारांश है।। 
क्षीरोदधि पर बना विष्णु का,शेषनाग जो रम्य निवास है। ब्रह्मांड की अनंत-आकाशगंगा का,वही सूक्ष्म विस्तार है।।यूं तो सृष्टि में हैं अनेक ग्रह,जहाँ जीवन का अनुमान है। रमणीय धरा में  मगर अपनी,मात्र नवग्रहों का प्रभाव है।।
दुःख,सुख जो है जगत में,वही नीर-क्षीर बाहुपाश है। राजहंस सदृश बनके हमने,होना सदैव विवेकवान है।। साधना और साधना से फैलती कस्तूरी की सुवास है।
मृग मरीचिका न भटके मन तो दिखता रामप्रकाश है।।दृश्य सारा जगत यूँ कहें तो बस एकमात्र आभास है।
हाँ यदि रहें श्रीचरण आश्रित तो अवश्य ही उद्धार है।।
@नलिन #तारकेश

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