Monday, 9 December 2019

स्थूल से सूक्ष्म

स्थूल से सूक्ष्म को अग्रसर सदा,यही जगत व्यवहार है।
देह तो है एक यंत्र बस,होना असल रूह से सरोकार है।।
बरतना प्रेम,करुणा,दया,निष्ठा यही सब तो सद्व्यवहार है। 
उतारना जीवन में इनको,यही स्वयं पर,एकमात्र उपकार है।।
प्रकृति-पुरुष का मेल सम्यक्,सृष्टि का नियत व्यापार है।
हो एक दूसरे पर सहज समर्पण,यही ईश का विधान है।।
है प्रति श्वास निश्चित,सुकर्म ही सदा रहा सदाचार है।।
प्रारब्ध जो है बदा,वो भी अपने सुकर्म का समाचार है।।
नित्य कर्तव्य कर्म करते,फल का यदि नहीं इंतजार है। विदेह सा फिर तो,वो जीव सदा ही,रहता निर्विकार है।। 
कृपा स्वरूप,जो मिली यह नर देह,हमें ये पुरस्कार है। 
करुणा सागर,श्री चरण प्रभु को,साष्टांग नमस्कार है।।
@नलिन#तारकेश 

No comments:

Post a Comment