Friday, 13 December 2019

288:गज़ल-जुल्फ लहरा के

लहरा के जुल्फ जो आंचल खोला उसने।
फलक से चांद सितारों को बटोरा उसने।।
दिले दहलीज पर रख महावर लगे पाँवों को।
जन्नत सा हंसी सजा दिया आशियाना उसने।।
रूप-रंग,जात-पात ये तो बेवजह के शगल हैं।
प्यार है क्या शय* प्यार से समझा दिया उसने।*चीज
शबेइंतजार लो हुआ खत्म शबेवस्ल*हो गई।*मिलनरात्रि
देर हुई तो सही पर शबेरोज* सजाया उसने।।*हर वक्त 
शफक*ए नूर आंखों से उतरता नहीं अब तो।
*क्षितिज की लाली
चौखट "उस्ताद" की जो सर झुकाया उसने।।
@नलिन #उस्ताद

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