Saturday, 28 December 2019

294:गजल-नमाज़ जुम्मे की

नमाज जुम्मे की अब हमारे जी का जंजाल हो रही।
आवाज जो थी अमन-चैन की वही बवाल हो रही।। 
जब चाहा तब मतलब-बेमतलब हाथ मोमबत्ती उठा ली। बता इसे सच की मशाल आगजनी खूब कमाल हो रही।। सियासत में अपने फायदे के सौदे तो सभी बांचते हैं।
जनता मुल्क की पर अब रोज़ बेवजह हलाल हो रही।।
ये कैसे नए जमाने के आलिम*,कुकुरमुत्तों से बढ़ रहे।*बुद्धिजीवी 
बयानबाजी ही जिनकी सितमगरों की ढाल हो रही।।
घुसपैठिए जो लूटने को आमदा हैं उन्हें सिर आंखों बैठा रहे।
वकालत उनकी यही तेरी आंख में सूअर का बाल हो रही।। 
ये उल्टी-सीधी कैसी पढ़ाते हो पट्टी तकरीर से अपनी। 
प्यार-मोहब्बत की बातें तो सब महज ख्याल हो रही।।
नेट में फंसा रहे मजलूम,मासूम मछलियां शिकार को।
डिजिटल इंडिया की तबीयत खामखां बेहाल हो रही।।तुम तो जो करो या कहो वो सब सवाब* से है लबालब  भरा।*पुण्य 
"उस्ताद"हमारी ही कथनी,करनी कहो क्यों सवाल हो रही।।
@नलिन #उस्ताद

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