Tuesday, 3 December 2019

283:गजल:यहाँ सिवा तनहाई के

यहाँ सिवा तन्हाई के हमने तो कुछ भी कमाया नहीं। 
किसी से क्या गिला करें जो रब को अपनाया नहीं।। लकीर के फकीर बन जिंदगी सारी गुजार दी। 
नशातारी डूबो गई होश हमें कभी आया नहीं।।
ग़ुरबतों* का रोना रोते रहे बेवजह हम तो।*विवशताओं 
दिया था बहुत उसने मगर हमने समीहा*नहीं।।*प्रयास 
नासमझ हम भटकते रहे,नहीं जाना पाना क्या है। 
बटोरा सारा रेत,कंकर बस जवाहर*संभाला नहीं।।*रत्न
पढ़ाया था"उस्ताद"ने जो सबक हमको प्यार का।
क्या कहें खोट मन की,उसे हमने दोहराया नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

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