वक्त भी गिरगिट सा क्या गजब रंग बदलता है।
बुलंदियाँ देता है तो कभी नेस्तनाबूद करता है।।
लाने का मुसलसल भले दिनों का जो दावा करे।
लीडर वो दरअसल अपना ही भला चाहता है।।
एक बरसात ने दिलकश बड़ा माहौल कर दिया।
ये मौसम भी न जाने क्या-क्या गुल खिलाता है।।
अजब रंग नए रोज दिखाती है सियासत हमको।
भरने साहब का टैक्स वो हमसे चंदा माँगता है।।
मरता है आम आदमी तो चुहलबाजी सूझती है उसे।
मिला एक दिन मिलावटी सामान तो नेता बौखलाता है।।
निठल्ला बैठना ही जब उसके नसीब में मढा हो।
जाने फिर क्यों खरीदना वो एक घड़ी चाहता है।।
समय रूकता नहीं ये तो सच है किसी के लिए भी।
मगर बुरा दौर आसानी से कहाँ भला गुजर पाता है।।
गए नहीं लगता बहुत दिनों से हुजूर हंसीन वादियों में।
खेलने शिकार तभी तो उन्हें कश्मीर याद आता है।।
चलेंगी न मगर रंगे सियार सी ये हरकतें तुम्हारी।
"उस्ताद"हर आदमी अब अपना हिसाब मांगता है।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Thursday, 19 September 2019
गजल:245 -वक्त रंग बदलता है
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