Thursday, 5 September 2019

गजल-227 सलीका आ जाए

जिंदगी जीने का जो सलीका आ जाए।    

मुश्किलों को हराने का तरीका आ जाए।।

हर बात पर यूँ तो रोना कतई ठीक नहीं।

करो ये कि चुनौतियों को रोना आ जाए।।

आसमां पर पंख पसारने की बात तो सही है।

मगर सोचो तभी जो जमीं चलना आ जाए।।

दूसरों को नसीहत तो देना आसान है बड़ा।

बात तब है जब खुद से रिश्ता निभाना आ जाए।।

नए दौर में पहचान है उसी शख्स की।

इल्म जिसे अपना भुनाना आ जाए।।

हुनर तो तभी तुम्हारा उस्ताद मानेंगे हम।

मिलने रकीब जब तुझसे हँसता आ जाए।
@नलिन#उस्ताद

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