बैठ आईने के सामने इबादत करता हूँ।
वो बसा है मुझमें बस ये सच मानता हूँ।।
फंतासी*में बहकने का,जरा भी है शौक नहीं मुझे।*कल्पना
नवाजा जो उसने,बस उस काम से काम रखता हूँ।।
ढूंढू उसे,भला दर-दर भटक कर,क्यों मैं उसे। धड़कनों में अपनी,जब उसे रोज ही सुनता हूँ।
जिंदगी का दस्तूर,असल निभाने की खातिर।
लबों पर हंसी,जेहन में बस सुकून रखता हूँ।।
सुबह हो,शाम हो ये तो बस उसका इख्तियार है।
भला मैं कहाँ इसकी जरा भी फिक्र करता हूँ।।
प्यार और प्यार दुनिया में रहे हर तरफ बस। खुदावंद से महज इतनी मैं दरकार रखता हूँ।।
मुफलिसों का बनके हमदर्द जो उनके आंसू पी सके।
उसे ही उस्ताद दरअसल मैं अपना खुदा चाहता हूँ।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday, 16 September 2019
234-गजल: बैठ आईने के सामने
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