उसकी जुबां को मेरा नाम लेना था।
जमाने को फिर तो हैरान होना था।।
आँखों से आँखें जो मिल गईं।
रूह को हर हाल महकना था।।
उसके सिवा नहीं कोई अपना।
बस यही हमें यार समझना था।।
चेहरे-मोहरे से तो बड़ा भला लगा मुझे। किसे खबर थी रंग उसने बदलना था।।
आँगन से बगैर बरसे गुजर गया बादल।
जाने किसने उसे ये पाठ पढ़ाया था।।
दांव उल्टा तो कभी सीधा ये तो लगा ही है।
इन बातों से कहाँ कब तक झिझकना था।।
पी जो उनकी निगाहे पैमाने से मय।
उस्ताद का वाजिब बहकना था।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 25 September 2019
गजल:251:मेरा नाम लेना था
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